Thursday, February 9, 2012

हमराह
रात के सफ़र में सितारे जैसे हमराह  होते हैं, साथ साथ चलते हैं मंजिल तक ..न कोई आडम्बर न ही कोई दिखावटी चमक बस अपने उज्वल स्वरुप की  चमक बिखेरते हुए जैसे हैं वैसे हे चल पड़ते हैं राहगीरों के संग सफ़र के साथी बनके .. मैंने बस की खिड़की से बहार देखा.. एक उदासी भरा घोर अंधकार किसी साये के तरह मालूम हो रहा था..एक पल तो डर कर मैंने अपनी  आखें बंद कर ली निराशा भरे विचरों के दलदल में धास्ती जा रहे थी, जैसे किसी डरावने साये मैं खोते जा रहे थे ... अजीब से घबराहट और डर ने मुझे घेर लिया..अचानक एक रोशनी की  लहर ने मेरी आँखे खोल दी... शायद कोई  बस का स्टॉप आया था.. रोशनी जैसे मुझे मेरे  विचारों के दलदल  से  निकल रही थी, मैं अपने आँखे खोली और  सहसा आसमान के तरफ देखा .. आसमान जैसे रौशनी  से भरा एक काफिला लग रहा था ... तारों के उजली काया ने जैसे मेरे विचारों पे पड़े उस घोर अन्धकार को अपने चमक से हरा दिया हो ...ऐसा लगा  जैसे तारे मेरी  एक नज़र का इंतजार कर रहे थे .. जैसे कोई  रास्ता दिखा रहे थे उजाले की ओर मुकुराते हुए मेरे सफ़र के यह साथी .. जगमगाहट से भरे तारे..  

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